उत्तरप्रदेश

रमाबाई आंबेडकर के पुण्यतिथि पर भीम आर्मी अध्यक्ष ने गिनाई उपलब्धियां

राजेश गौतम

भारत रक्षक न्यूज

महराजगंज आज 27 मई 2025 को उत्तर प्रदेश के जनपद महराजगंज भीम आर्मी व आजाद समाज पार्टी कार्यालय पर बाबा साहब की जीवन संगिनी त्याग मूर्ति माता रमाबाई अंबेडकर जी की पुण्यतिथि मनाते हुए तमाम कार्यकर्ताओं के साथ

अखिलेश आजाद ने कहा कि डाॅ.भीराव आंबेडकर को आज पूरा देश संविधान निर्माता, समाज सुधारक और दलितों के मसीहा के रूप में जानता है। लेकिन उनके संघर्षों और उपलब्धियों के पीछे एक शांत, सहनशील और मजबूत स्त्री की अहम भूमिका रही।यह महिला रमाबाई आंबेडकर थीं। रमाबाई आंबेडकर बाबा साहेब की जीवनसंगिनी थीं। उनका जीवन बचपन से ही कठिनाइयों से भरा रहा, रमाबाई ने विचार, उनके त्याग और धैर्य ने उन्हें एक आदर्श नारी के तौर पर समाज के समक्ष रखा। रमाबाई आंबेडकर का निधन 27 मई को हुआ था। उनका नाम भले इतिहास की किताबों में ज्यादा न लिखा गया हो, लेकिन वे एक ऐसी स्त्री थीं जिनकी छाया में एक युगपुरुष ने अपने विचारों और कर्मों से इतिहास रचा। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देना, उनके त्याग और योगदान को सम्मान देना है। रमाबाई आंबेडकर की पुण्यतिथि के मौके पर उनके जीवन और योगदान के बारे में

रमाबाई आंबेडकर का जीवन परिचय बताते हुए कहा की

रमाबाई का जन्म 1896 में मुंबई के पास वानंद गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम रमाबाई मालवणकर था। कम उम्र में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया और जीवन कठिनाइयों में गुजरा रमाबाई का विवाह

1906 में रमाबाई की शादी महज 10 साल की उम्र में भीमराव आंबेडकर से हो गई थी, जो उस समय खुद भी शिक्षा की राह पर संघर्ष कर रहे थे। रमाबाई ने गरीबी, सामाजिक उपेक्षा और कठिन परिस्थितियों में भी डॉ.आंबेडकर का पूरा साथ निभाया।
जब डॉ. आंबेडकर उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए, रमाबाई ने परिवार की जिम्मेदारी अकेले निभाई। उनके पांच बच्चों में से केवल एक बेटा, यशवंत ही जीवित रह पाया। इन दुखों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और डॉ. आंबेडकर को उनके सामाजिक कार्यों के लिए प्रेरणा देती रहीं।

रमाबाई एक पढ़ी-लिखी महिला नहीं थीं, लेकिन उनका जीवन अपने पति के आदर्शों और सपनों को समर्थन देने में बीता। डॉ. आंबेडकर खुद अपनी आत्मकथा में रमाबाई को अपने संघर्षों की सबसे बड़ी ताकत मानते थे।उन

का निधन 27 मई 1935 को लंबी बीमारी के बाद हुआ। उनके निधन के समय डॉ. आंबेडकर ने गहरा दुख व्यक्त किया और उनके सम्मान में एक ग्रंथ ‘रामा’ समर्पित किया। रमाबाई का जीवन महिलाओं के त्याग, धैर्य और अटूट समर्थन की मिसाल है।

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